इन दिनों लोग अपनी सेहत के मद्देनजर खाने पीने का खास ध्यान रखने लगे हैं। वे उस तरह के उत्पादों को वरीयता देने लगे हैं, जिनके उत्पादन में केमिकल्स का इस्तेमाल न हुआ हो, ताकि उनके स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े।

उधर, किसान भी शून्य उत्पादन लागत एवं खेत की मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए जीरो बजट प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। आज इस पोस्ट में हम आपको इसी जीरो बजट खेती योजना के संबंध में बिंदुवार जानकारी देंगे।

दोस्तों, जीरो बजट (zero budget) खेती जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें खेती की लागत (cost) जीरो यानी शून्य होती है। यह प्राकृतिक खेती का एक तरीका है। इस तरीके से खेती में देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है।

कुल मिलाकर इस खेती में बाहर से किसी भी उत्पाद का कृषि में निवेश निषिद्ध होता है। जाहिर है कि इस विधि में किसान को बाजार से खाद, उर्वरक, कीटनाशक एवं बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे उसकी उत्पादन लागत शून्य होती है।

 जिन किसानों के पास खेती के लिए पूंजी यानी कैपिटल (capital) का अभाव होता है, उनके लिए यह खेती वरदान की तरह है। इसमें हाइब्रिड बीज (hybrid seed) का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसके स्थान पर पारस्परिक देशी उन्नतशील प्रजातियों का इस्तेमाल किया जाता है।

दोस्तों, इस विधि से खेती का गणित ऐसे समझ सकते हैं-यदि आप इस विधि से खेती करते हैं तो 30 एकड़ जमीन खेती के लिए महज एक देशी गाय के गोबर एवं गोमूत्र की आवश्यकता होती है। देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर एवं गोमूत्र से जीवामृत, घन जी

आपको बता दें कि जीवामृत का इस्तेमाल सिंचाई के साथ अथवा एक से दो बार खेत में छिड़काव में किया जा सकता है। वहीं, बीजामृत का उपयोग बीजों को उपचारित करने में होता है।

जीरो बजट खेती योजना के लाभ देखते हुए आंध्र प्रदेश ने खेती की इस विधि को पूरी तरह अपना लिया है। आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश ऐसा करने वाला पहला राज्य है। प्रदेश सरकार ने सभी गांवों तक इस खेती को 2024 तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।

जीरो बजट खेती योजना विधि, लाभ, उद्देश्य एंव विशेषताएं इसकी अधिक जानकारी के लिये नीचे लिंक पर क्लिक करें?